siddha kunjika stotram with lyrics ॥ श्री सिद्ध कुंजिका स्तोत्रम् ॥
श्री सिद्ध कुंजिका स्तोत्रम् माँ दुर्गा का एक अत्यधिक प्रभावशाली स्तोत्र है | समस्त बाधाओं को शांत करने, शत्रु दमन, ऋण मुक्ति, करियर, विद्या, शारीरिक और मानसिक सुख प्राप्त करना चाहते हैं तो सिद्धकुंजिकास्तोत्र का पाठ अवश्य करें। इस स्तोत्र को जागृत या सिद्ध स्तोत्र कहा गया है जिसका मतलब है की ये स्वयंसिद्ध है, आपको इसे सिद्ध करने की आवश्यकता नहीं है | इस स्तोत्र को दुर्गा सप्तशती का मूल मंत्र बताया गया है और इसमें कई प्रभावशाली बीज मंत्र भी सम्मिलित है |
Siddha Kunjika Stotram from Durga Saptashati. Siddha Kunjika Stotram is the most powerful and favorite stotra of the DEVI This great prayer is chanted before the reading of Chandi path / Sapthasathi (known as Devi Mahathmya). Devotees believe that just a recitation of Sidha Kunjika stotram is equivalent to recitation of the complete Durga Saptashati and also that the reading of Chandi Path (Devi Mahatmya) would not give complete results without reading Sidha Kunjika stotram before it.
source
ati sundar!!
kunjika strot Madhyam se sabhi ka Uddhar hota hai Jay Sherawali man
Jai Mata Di
॥ श्री सप्त-श्लोकी दुर्गा स्तोत्र ॥
( Easy To Learn : v1)
Shri Shapta Shloki Durga Stotra
॥ शिव उवाच ॥
देवि त्वं भक्त-सुलभे सर्व-कार्य-विधायिनी।
कलौ हि कार्य-सिद्धयर्थम्-उपायं ब्रूहि यत्नतः॥
॥ देव्युवाच ॥
श्रृणु देव प्रवक्ष्यामि कलौ सर्वेष्टसाधनम्*। *= सर्व-इष्ट-साधनम्
मया तवैव स्नेहेनाप्यम्बास्तुतिः* प्रकाश्यते॥ *स्नेहेन-आप्य्-अम्बा-स्तुतिः
॥ विनियोगः॥ॐ अस्य श्री दुर्गा-सप्तश्लोकी-स्तोत्र-मन्त्रस्य नारायण
ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, श्री-महाकाली-महालक्ष्मी-महासरस्वत्यो देवताः,
श्री-दुर्गा-प्रीत्यर्थं (या आपकी कोई और मनोकामना-सिद्धयर्थे)
सप्तश्लोकी-दुर्गा-स्तोत्र-पाठे विनियोगः।
(* अर्थ : इस दुर्गा-सप्तश्लोकी-स्तोत्र-मन्त्र के नारायण ऋषिः हैं,
अनुष्टुप् छन्दः है, श्री-महाकाली-महालक्ष्मी-महासरस्वत्यो मूल
(मुख्य) देवता हैं, और श्री-दुर्गा जी कि-प्रीति (कृपा) के लिये /
(या आपनी कोई और मनोकामना-सिद्धि के लिये)
साधक इस स्तोत्र का पाठ कर रहा है । )
॥ मूल पाठ ॥
ॐ ज्ञानिनाम्-अपि चेतांसि देवी भगवती हि सा।
बलादाकृष्य* मोहाय महामाया प्रयच्छति॥१॥ *=बलाद्-आकृष्य
दुर्गे स्मृता हरसि, भीतिम-शेषजन्तोः,
स्वस्थैः स्मृता मति-मतीव शुभां ददासि।
दारिद्र्य-दुःख-भय-हारिणि का त्वदन्या, सर्वोपकार-करणाय सदार्द्रचित्ता ॥२॥
*दारिद्र्य-दुःख-भय-हारिणि का त्वद्-अन्या, सर्वो-उपकार-करणाय सदा-आर्द्र-चित्ता
सर्वमङ्गल-माङ्गल्ये शिवे सर्वार्थ*-साधिके। *सर्व-अर्थ = सभी इच्छा
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते॥३॥
शरण-आगत-दीनार्त-परित्राण-परायणे ।
सर्वस्यार्ति-हरे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते॥४॥
सर्वस्वरूपे* सर्वेशे सर्वशक्ति-समन्विते।
*सर्वस्वरूपे =सर्व-स्वरूपे = सर्वस्व-रूपे = दोनो उचित लगता है ।
भयेभ्यस्-त्राहि नो देवि, दुर्गे देवि नमोऽस्तु ते॥५॥
रोगान-शेषान-प-हंसि तुष्टा रूष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान्। *सकलान्-अभीष्टान्
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति॥६॥
*त्वाम-आश्रितानां न विपन्-नराणां, त्वाम्-आश्रिता ह्-य्-आश्रयतां प्रयान्ति॥६॥
सर्वाबाधा-प्रशमनं त्रैलोक्यस्य-अखिलेश्वरि* । *अखिल-ईश्वरि
एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरिविनाशनम्॥७॥
* एवम्-एव त्वया कार्यम-स्मद्-वैरि-विनाशनम्॥७॥
॥ इति श्री-सप्त-श्लोकी दुर्गा सम्पूर्णा ॥
( श्री दुर्गा-अर्पणम्-अस्तु )
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॥ अथ अर्गला-स्तोत्रम् (Durga Saptashati)॥
( Easy To Learn)
विनियोगः-ॐ अस्य श्री-अर्गला-स्तोत्र-मन्त्रस्य विष्णु-ऋषिः,
अनुष्टुप् छन्दः, श्री-महालक्ष्मी-र्देवता,
श्री-जगदम्बा-प्रीतये सप्तशति-पाठाङ्गत्वेन जपे विनियोगः।
*? सप्तशति-पाठ-अङ्गत्व्-एन (*शप्तशती पाठ करना हो तो)
श्री-जगदम्बा-प्रीतये – – जपे विनियोगः। (* केवल अर्गला स्तोत्र करना हो तो)
ॐ नमश्-चण्डिकायै ।
मार्कण्डेय उवाच ।
ॐ जय त्वं देवि चामुण्डे जय भूताप-हारिणि ।* भूतार्ति-हारिणि।
जय सर्वगते देवि कालरात्रि नमोऽस्तु ते ॥ १॥
जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी ।
दुर्गा शिवा क्षमा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते ॥ २॥
मधु-कैटभ-विध्वंसि, विधातृ-वरदे नमः ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ ३॥
महिषासुर-निर्नाशि भक्तानां सुखदे नमः ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ ४॥
धूम्रनेत्र-वधे देवि, धर्म-कामार्थ-दायिनि ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ ५॥
रक्त-बीज-वधे देवि, चण्ड-मुण्ड-विनाशिनि ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ ६॥
निशुम्भ-शुम्भ-निर्नाशि, त्रैलोक्य-शुभदे नमः ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ ७॥
वन्दिताङ्घ्रि-युगे देवि, सर्व-सौभाग्य-दायिनि ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ ८॥
अचिन्त्य-रूप-चरिते, सर्व-शत्रु-विनाशिनि ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ ९॥
नतेभ्यः सर्वदा भक्त्या चापर्णे* दुरितापहे । *चापर्णे ? = च-अपर्णे
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ १०॥
स्तुवद्भ्यो भक्तिपूर्वं त्वां चण्डिके व्याधि-नाशिनि । *स्तुवद्-भ्यो
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ ११॥
चण्डिके सततं युद्धे, जयन्ति पाप-नाशिनि ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ १२॥
देहि सौभाग्यमारोग्यं*, देहि देवि परं सुखम् । *सौभाग्यम्-आरोग्यं
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ १३॥
विधेहि देवि कल्याणं, विधेहि विपुलां श्रियम् ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ १४॥
विधेहि द्विषतां नाशं, विधेहि बलमुच्चकैः* । *?बलम्-उच्चकैः
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ १५॥
सुरासुरशिरोरत्ननिघृष्टचरणेऽम्बिके ।
* सुरासुर (सुर-असुर) -शिरोरत्न-निघृष्ट-चरणेऽम्बिके ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ १६॥
विद्या-वन्तं यशस्वन्तं लक्ष्मी-वन्तञ्च मां कुरु । *=लक्ष्मी-वन्तं-च
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ १७॥
देवि प्रचण्डदोर्दण्डदैत्यदर्पनिषूदिनि ।
* देवि प्रचण्ड-दोर्दण्ड-दैत्य-दर्प-निषूदिनि
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ १८॥
प्रचण्ड-दैत्य-दर्पघ्ने चण्डिके प्रणताय मे ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ १९॥
चतुर्भुजे चतु-र्वक्त्र-संस्तुते परमेश्वरि ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ २०॥
कृष्णेन संस्तुते देवि शश्वद्भक्त्या सदाम्बिके ।
*कृष्णेन संस्तुते देवि शश्वद्-भक्त्या सदा-अम्बिके ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ २१॥
हिमाचल-सुता-नाथ-संस्तुते परमेश्वरि ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ २२॥
इन्द्राणी-पति-सद्भाव(सद्-भाव)-पूजिते परमेश्वरि ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ २३॥
देवि भक्त-जनोद्दामदत्तानन्दोदयेऽम्बिके।*आनन्दो-दये ?
*देवि भक्त-जनोद्-दाम-दत्ता (?दत्त)-आनन्द-उदये ?-अम्बिके ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ २४॥
भार्यां मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम्* । *मनोवृत्ता-अनुसारिणीम्
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ २५॥
तारिणि दुर्ग-संसार-सागर-स्या-चलोद्-भवे ।
Var: तारिणीं दुर्ग संसारसागरस्य कुलोद्भवाम् ।।
* तारिणीं दुर्ग संसार-सागरस्य कुलोद्-भवाम् ॥
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ २६॥
इदं स्तोत्रं पठित्वा तु महा-स्तोत्रं पठेन्नरः* । *पठेन्-नरः
सप्तशतीं समाराध्य वरमाप्नोति दुर्लभम् ॥ २७॥
(*सप्तशतीं सम-आराध्य, वरम-आप्नोति दुर्लभम् )
॥ इति श्री-मार्कण्डेय-पुराणे अर्गला-स्तोत्रं समाप्तम् ॥
( श्री दुर्गा-अर्पणम्-अस्तु )
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Jai mata di
Nice strotam
Jay maa Kali
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Wah Jay ho Jay ho Jay ho
Jai Mata di
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Maa k charno me koti a koti vandan
माँ
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जय माता दी
Jay Mata Rani
Jai mata di
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SHIV O HUM JI.
!!Jai Mata Di!!
Ma parvati namaha…jai mata di
Jai mata Parvati
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Om ma navdurge Devi namo namaha…Jai Mata Di
Jay Mata di
Ma navdurge namo namaha…jai mata di
जय मातादी
गुरुदेव आप इसी तरह दुर्गासप्तशती के एक एक पाठ का इसी प्रकार वीडियो बनाए।क्योकि इस वीडियो को देखने के बाद यह हमें अच्छी तरह समझ मे आ गया।
Jai Maa Ambe
Jai mata di
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Jai ambe gauri